औरतें जब बैठती हैं..
औरतें जब बैठती हैं एक साथ
चंद पल फुर्सत के निकाल
मुस्कुराती हैं हँसती हैं
चहकती हैं फफकती हैं
और कभी-कभी
शोलों सी धधकती हैं
औरतों के किस्सों में
सिर्फ सिरफिरी किस्सागोई नहीं होती
रसोईघर से राजनीति
कसौटी घर घर की से शुजूका पोकेमान
अजान से केदारनाथ
गूगल से डिस्कवरी तक
पूरा ब्रह्मांड छिपा होता है
गहरे भेद छिपा जाने वाली ये नारियाँ
ज़िन्दगी के लम्हों को लम्हा लम्हा पीती हैं
औरतें जब बैठती हैं एक साथ…
चटकीली भड़कीली नखरीली सुरीली
रौबीली छबीली अलबेली नवेली
नित नई पहेली सी ये हमजोलियाँ
जब कभी बैठती हैं बना पांत
धरती से अंबर तक तय सफर करतीं हैं
रोज़ ब रोज़ नई बहर करती हैं
संजली की बातों पर आह
बोगीबील पर वाह
प्रियतम के किस्सों पर लजा जाती हैं
मोदी पर कुछ भी कहने से बचती हैं
छोटी छोटी बातों पर बेसाख्ता हँसती हैं
इन औरतों की कोई जात नहीं होती
और तो और औकात नहीं होती
राधा और रुबी
रुक्मिणी और रशीदा
कमला और गायत्री
बलविंदर और हमीदा
हौले से मिला हाथ
या सिर्फ कनखियों से
कितना कुछ कह जातीं हैं
रोज़ नई विधा बन सामने आतीं हैं
“प्रीति राघव चौहान”
बटुआ
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
घर संग समूचा ले
कारोबार साथ चलती हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
बिन्दी, कंघी, लिपस्टिक
क्लिप, कजरा, बाली
इसमें लिये सोलह
श्रृंगार साथ चलतीं हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
गौर से झांकोगे तो
हैरत में पड़ जाओगे
पासवर्ड डायरी में ले
हजार साथ चलतीं हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
एक छोटे से बटुए में
तरह तरह के बटुए
बटुओं में ले चमत्कार
साथ चलतीं हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
पैन, लाइसेंस, बिल, रसीदें,
पुर्जों में लिखे नम्बर
एटीएम, पेटीएम के
और लिए हर घड़ी
आधार साथ चलतीं हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
कुछ, टॉफी, चॉकलेट
काला नमक, भुना जीरा
रोटी पानी संग ले
अचार साथ चलतीं हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
चाबियों के गुच्छे, चश्में,
चार्जर, फोन, इयरफोन
पॉवर बैंक जैसे लिए
बाज़ार साथ चलतीं हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
डर को ढककर
नकाब में हैं निकलतीं
स्प्रे, पिन, चाकू से ले
हथियार साथ चलतीं हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
दवाइयों का पाऊच
मिलेगा थैले में जरूर
बन ताउम्र तीमारदार
साथ चलतीं हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
मैंने उसके बटुए में
देखें हैं कंचे, माचिस भी,
बच्चों से छीन आग
ले बहार साथ चलतीं है
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
जिस बटुए को है कसकर
कलेजे से लिपटा रक्खा
उसमें महज़ किराया
ले हर बार साथ चलतीं है
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
प्रीति राघव चौहान
SPEED IS MUST
जीना है गर तुझे रफ्तार जरूरी है
जमीन से आकाश तक
इस पार से उस पार तक
जीतना है हार को
सींचना है प्यार को
जुटा ले अपना हौंसला
जीना है गर तुझे
रफ्तार जरूरी है
खींच कर बुलाएंगी
वो काली काली खिड़कियां
थाम लेंगी पग तेरे
वो टेढ़ी,तिरछी कनखियांँ
पलट दे उनकी बिसात
छोड़ पीछे काली रात
जीना है गर तुझे
रफ्तार जरूरी है
है हर कदम नया सबक
तू हर कदम पे बन सबक
उजाड़ रास्ते सही
स्वेद सलिला सा धमक
सुनहरी कल बोने को
रफ्तार जरूरी है..
प्रीति राघव चौहान
वो सृष्टि है
वो वृष्टि है
नित नूतन
वो दृष्टि है
सिंदूरी रंग
टिकुली में ले
वो सम्पूर्ण
समष्टि है
स्वाभाविक
ममत्व लिए
एक मात्र
सुकृति है वो
स्वाभिमान से
भरी-पूरी वो
स्नेह भरी
अतिवृष्टि है
उससे घर है
उससे दुनिया
उससे मुन्ना
उससे मुनिया
लेकर चलती
अपने संग वो
हर दिन
सर्वश्रेष्ठ
समदृष्टि है
वो सृष्टि है
वो वृष्टि है..
प्रीति राघव चौहान
गुरुग्राम