तीज

0
38

तीज pritiraghavchauhan.com

सज सँवर कर तीज पर
निकलती नहीं अब गोरियाँ

सज सँवर कर तीज पर

 

मेंहदी सजी हथेलियाँ 

भर-भर कलाई चूड़ियाँ 

अंजन भरी आँखे लिये 

होठों पे रचा सुर्खियाँ

लाल पीले घाघरे

सिर पर हरी चुनरियाँ

रुनझुन करती पायलें

और साड़ियों में लहरियाँ

सज सँवर कर तीज पर 

निकलती नहीं अब गोरियाँ

 

बीता हुआ इतिहास है 

वो डाल पर झूले सभी 

कल की ही मानो बात है 

वो शोरगुल मेले सभी 

वो दौड़ की प्रतियोगिता 

वो ठाठ वो रेले सभी 

खो गई जाने कहाँ 

वो साथ की हमजोलियाँ

सज सँवर कर तीज पर 

निकलती नहीं अब गोरियाँ

 

शहरों ने लीले गाँव यूँ 

खलिहान सारे खो गए

डालें भला झूल किसपर

पेड़ बौने हो गए

दो रोटियों की दौड़ में 

पीहर बेगाने हो गए

ढूंढे नहीं मिलती कहीं 

अल्हड़ सी वो अठखेलियाँ 

सज सँवर कर तीज पर 

निकलती नहीं अब गोरियाँ

‘प्रीति राघव चौहान ‘

SHARE
Previous articleकिताबें
Next articleफोन का उपवास
नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

LEAVE A REPLY