टिटहरी की चीख”

कहानी : टिटहरी की चीख

जोहड़ के किनारे शाम उतर रही थी। सुनहरा सूरज पानी में अपना चेहरा निहार रहा था। वहीं, एक नन्हा सा टिटहरी का जोड़ा अपने बच्चों के साथ बैठा था। माँ-पापा टिटहरी कभी अपने पंखों से बच्चों को छूते, कभी उनकी चोंच से प्यार करते। पूरा परिवार खुश था—शांत और सुरक्षित।

तभी झील के किनारे से तीन लड़कों का झुंड आया। उनमें से एक के हाथ में डंडा था। पहले तो उन्होंने पत्थर फेंके, फिर उनमें से एक ने झपटकर टिटहरी के एक बच्चे को उठा लिया। अब वे उस नन्हे मासूम को गेंद की तरह उछालने लगे—हँसते हुए, जैसे ये कोई मज़ाक हो। टिटहरी माँ-बाप आकाश में चक्कर काटते हुए चीखने लगे—एक असहाय, डर और क्रोध से भरी चीख।

उसी समय, रेवासन की राजकीय प्राथमिक पाठशाला के कुछ बच्चे अपनी अध्यापिका के साथ ग्राम भ्रमण पर थे। उन्होंने टिटहरी के उस बच्चे को बचाने की गुहार, वह चीख सुनी जो भाषा से नहीं, संवेदना से भरी थी। बच्चों ने तुरंत पूछा—“मैडम, क्या हम उसे बचाएँ?”

मैंने कहा, “हाँ, पर ध्यान से! उन्हें पकड़कर लाओ।”

बच्चे दौड़े—जैसे किसी अपने को बचाने जा रहे हों। उन्होंने उन लड़कों को रोका, समझाने की कोशिश की। पर शैतानी ज़िद में वे और उग्र हो गए। उन्होंने टिटहरी के बच्चे को झाड़ियों में फेंक दिया और डंडे से हमारे बच्चों को डराने लगे। कुछ को खरोंच भी आई। लेकिन बच्चे पीछे हटते हुए बोले—“अभी मैडम को बुलाते हैं।”

मैं दौड़ती हुई पहुँची, पीछे बाकी बच्चे भी थे। हमारी आहट सुनकर वो तीनों लड़के भाग गए—शैतान केवल डंडे से नहीं, मन की ताकत से भी हारते हैं।

अब बच्चों ने कहा—“मैडम, क्या हम उस टिटहरी बच्चे को ढूंढें? देखिए माँ-पापा कैसे तड़प रहे हैं।”

मेरे इशारे के साथ ही बच्चों ने झाड़ियों की खोज शुरू की। पत्तों को हटाते, फूँक मारते, काँटों से खुद को बचाते हुए वो उसे ढूंढ ही लाए। नन्हा पंखों में काँप रहा था। उन्होंने उसे अपनी हथेलियों में सहलाया, आँसू पोछे, और उसकी धड़कनों को सुना।

हमने उसे वहीं छोड़ दिया—जहाँ उसका घर था। टिटहरी माँ-पापा तुरंत उसकी ओर लपके। अब कोई शोर नहीं था। हवा में बस एक शांत संदेश तैर रहा था—“शुक्रिया बच्चों।”

इस एक शाम ने तीन बातें कह दीं—

1. टिटहरी भी हमारे जैसे परिवार में जीती है—माँ, पापा, बच्चे और उनके रिश्ते।

2. बच्चों में अगर सही समय पर संवेदना बोई जाए, तो वो किसी भी प्राणी के दर्द को समझ सकते हैं।

टिटहरी की चीख3. शैतानियत ताकत से नहीं, सच्चे साहस और करुणा से हारती है।

VIAPritiRaghavChauhan
SOURCEPriti Raghav Chauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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