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उपसर्ग और प्रत्यय जवाहर नवोदय प्रीति राघव चौहान
उपसर्ग और प्रत्यय
वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं।
उत्पत्ति के आधार पर शब्द के तीन भेद होते हैं।
• रूढ़
• यौगिक...
नदी
फिर तोड़कर चली है वो बांध और किनारे
हँसते थे कभी जिसको अल्हड़ सी नदी कहकर
मायूस न हो लौटना अब उसका नहीं होगा
सदियों से था...
औरतें कांधे पर ले संसार साथ चलतीं हैं
औरतें कांधे पर
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं हैं
घर संग समूचा ले
कारोबार साथ चलती हैं
औरतें कांधे पर ले
संसार साथ चलतीं...
काग़ज़ के टुकड़े
काग़ज़ के टुकड़े
चंद टुकड़े कागज के देकर विदा किया
सदियाँ संग जिसके हंसकर गुजार दीं
खिलौने भर औकात लिए घूमते रहे
खेलकर चाबी उसने दूजे को उछाल...
बजट के बहाने
कभी हम हँसे कभी वो हँसे
है ज़िन्दगी का बजट यही
फिर क्या गिला कितना मिला
कभी वो सही कभी हम सही
पाक की नापाक हरकत
सैंसर के पहले की फिल्म कैसे पहुँची पाकिस्तान ??
जयचंद मेरे मुल्क के मुगालते में हैं
पैरों तले ज़मीन शायद सीधी सपाट है
बेगैरत हैं...
मैं वतन का हूँ सिपाही बाल कविता
मैं वतन का हूं सिपाही
मैं वतन का हूँ सिपाही
यह वतन हमदम मेरा
इसके सजदे करते-करते
बीते यह जीवन मेरा
मैं वतन का...
मैंने हिंदू देखे मैंने मुसलमां देखे
मैंने हिंदू देखे मैंने मुसलमां देखे अपनी ही भूख से सारे पशेमां देखे
गाँव के जोहड़ दुकानों में तब्दील हैं ...
जरा मुस्कुराओ
वह अपने घर के सोफे में
ठीक ऐसे ही टँकी थी
जैसे उसके पीछे टँगी तस्वीर
जो मुस्कुराकर झांक रही थी मेज में
मुस्कुराती तस्वीर
सचमुच गजब ढा रही...