Tag: Priti Raghav Chauhan /बाल कविता
मेरे घर में कोई न कोना?
मेरे घर में कोई न कोना
दीवारों की गिनती बोल
तीजी मंजिल बना तिकोना
छत्तीस खिड़की घन बेडौल
कहे दुलारी हँसकर भैया
रामलली का डिब्बा गोल
जितनी नाली जितने...
बचपन और बाली
बचपन और बाली
खेत और खेल
सूरज तक हेल*
बचपन सी बालियाँ*
बालियों की बेल
नन्हीं उंगलियाँ
अनजान फांस से
*सिल्लो की आस में
जाती बना रेल
बस्ता बाट पर
*बाट रहा जोहता
निगल न...
वन्दे वसंत वन्दे वसंत
वन्दे बसंत
उम्मीद के कपाट को
बसंत खटखटा रहा
हस्त ले अमृत कलश
बसंत छटपटा रहा
हे सृष्टि कर अभिनंदन
वन्दे बसंत वन्दे बसंत
तू देख विद्यमान को
क्यों झरे पात देखना
नव...