ये सूरज है… चाँद जैसा
हवा में लटके धूल और धुंए की महीन चादर में अपने अस्तित्व को तलाशता शहर की तेज रफ्तार में धीरे धीरे भागता ये सूरज है.. चाँद जैसा ये सूरज है भीड़ से त्रस्त आसक्ति और मोह से से बंधा संवेदना- शून्य आले में सजा ये सूरज है…… चाँद जैसा ये सूरज है शोरगुल में डूबा ट्रैफिक जाम में अटका चहुँ ओर बिखरी मीनारों पर लगे स्मृतियों के पोस्टरनुमा जाले में फँसा आज से बेफिक्र सुनहरे कल को तलाशता ये सूरज है….. चाँद जैसा “प्रीति राघव चौहान”