सीख रहा है
बचपन
नित नये कौशल ..
रचनात्मक तरीकों से
समाज के साथ चलना
कल्पनाशीलता का
स्वाभाविक गुण लिए
उसकी तूलिका
बनाती है
बेढब बेरंग सांझी
को बेजोड़ आलौकिक
उस सांझ वो उस
अप्रतिम सांझी
बहुत देर बिसूरती रही
अपने अपूर्व सौंदर्य पर
होकर बाहर सांस्कृतिक उत्सव से
उसे रंगों से सराबोर नहीं होना था
उसके लिए गोबर से पुता
वही कोना था
गेरू खड़िया से उसको
रचा जाना था
इक्कीसवीं सदी में
प्राचीन रखा जाना था ..
इस उनकी तरह उनकी
विरासत को बचाना था
सांझी … जिसके
आगमन से विसर्जन तक
बजते हैं ढोल ताशे
गाये जाते हैं हर सांझ गीत
विदाई पर हो हल्ले संग
बांटे जाते हैं बताशे
वो सांझी
वही सांझी धरोहर है
शान है हरिभूमि की
क्या हर्ज़ है इसमें मिले
छटा तनिक बृजभूमि की है।
सांझी को थोड़ा
महावर और गुलाल दें।
तनिक सा बिटिया की
कल्पना को ताल दें
सांझी ही नहीं
हमें संस्कृति बचानी है
संवेदनना बची रहें
वह दिशा दिखानी है
…… ध्वजा मूल्यों की लिए
है संग उसके सारथी
संवेदनशीलता को बचाए
रखना सारथी का ध्येय है ..प्रीति
उपरोक्त कविता पर एकमात्र काॅपीराईट अधिकार प्रीति राघव चौहान का है ।