सीख रहा है
बचपन
नित नये कौशल ..
रचनात्मक तरीकों से
समाज के साथ चलना

कल्पनाशीलता का
स्वाभाविक गुण लिए 
उसकी तूलिका
बनाती है
बेढब बेरंग सांझी
को बेजोड़ आलौकिक

उस सांझ  वो उस
अप्रतिम सांझी
बहुत देर बिसूरती रही
अपने अपूर्व सौंदर्य पर
होकर बाहर सांस्कृतिक उत्सव से
उसे रंगों से सराबोर नहीं होना था
उसके लिए गोबर से पुता
वही कोना था
गेरू खड़िया से उसको
रचा जाना था
इक्कीसवीं सदी में
प्राचीन रखा जाना था ..
इस उनकी तरह उनकी
विरासत को बचाना था

सांझी … जिसके
आगमन से विसर्जन तक
बजते हैं ढोल ताशे
गाये जाते हैं हर सांझ  गीत
विदाई पर हो हल्ले संग
बांटे जाते हैं बताशे
वो सांझी 
वही सांझी धरोहर है
शान है हरिभूमि की
क्या हर्ज़ है इसमें मिले
छटा तनिक बृजभूमि की है।

सांझी को थोड़ा
महावर और गुलाल दें।
 तनिक सा  बिटिया की
कल्पना को ताल दें
सांझी ही नहीं
हमें संस्कृति बचानी है
संवेदनना बची रहें
वह दिशा दिखानी है

…… ध्वजा मूल्यों की लिए  
है  संग उसके सारथी
संवेदनशीलता को बचाए 
रखना सारथी का ध्येय है ..प्रीति

उपरोक्त कविता पर एकमात्र काॅपीराईट अधिकार प्रीति राघव चौहान का है ।

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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