वर्ण और वर्णमाला (हिन्दी व्याकरण)

वर्ण और वर्णमाला

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हिन्दी व्याकरण वर्णमाला 

राजकीय प्राथमिक पाठशाला रेवासन 

स्कूल कोड 15812

भाषा की सार्थक इकाई वाक्य है।

मुस्कान बहुत सुन्दर लिखती है।

वाक्य से छोटी इकाई उपवाक्य है।

मीना की माँ ने कहा कि मुस्कान अच्छी बेटी है । 

उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध है। 

नदी कल- कल करती हुई बह रही थी। 

पदबंध से छोटी इकाई पद है। 

मीना

और

के बिना

वाह! 

पद से छोटी इकाई शब्द है। 

मैं, घीया, सितार 

शब्द से छोटी इकाई अक्षर है। 

ब र क्ष आ उ

अक्षर को ही वर्ण कहते हैं। 

क् म्   

राम शब्द में दो अक्षर एवं 4 वर्ण हैं।

रा +म   

र्+आ+म्+अ

    वर्णमाला : भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। इस ध्वनि को वर्ण कहते हैं। वर्णमाला वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं। 

मानक हिंदी वर्णमाला: हिंदी में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण(10स्वर + 35 व्यंजन) 

एवं लेखन के आधार पर 52 वर्ण (13 स्वर + 35 व्यंजन +4 संयुक्त व्यंजन) है। 

स्वर:

अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ (10) 

ऋ अं अ: (3)  

 व्यंजन: 

क वर्ग – क ख ग घ ङ

च वर्ग – च छ ज झ ञ

ट वर्ग – ट ठ ड ढ ण

त वर्ग – त थ द ध न   

प वर्ग – प फ ब भ म

अंत:स्थ – य र ल व

ऊष्म – श ष स ह. (33) 

द्विगुण व्यंजन :ड़ ढ़(2)

संयुक्त व्यंजन – क्ष(क्+ष)

त्र(त्+र) ज्ञ(ज्+ञ) श्र(श्+र)__4

   प्रीति राघव चौहान 

  वर्णमाला भाग 2

विदेशों से आगत (गृहीत) ध्वनियाँ-

 अरबी- फारसी: अ़ क़ ख़ ज़ फ़

(तल बिन्दु वाले वर्ण) 

अंग्रेजी :अॉ जैसे- कॉपी कॉलेज डॉक्टर डॉलर (अर्ध बिन्दु वाले वर्ण) 

 वर्णों की गणना 

वर्णों की गणना दो आधार पर की जाती है – 

*उच्चारण *लेखन

 उच्चारण के आधार पर की गई वर्ण गणना को ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। 

उच्चारण के आधार 

उच्चारण के आधार पर हिंदी में वर्णों की कुल संख्या 47 है। (10 स्वर+ 37 व्यंजन) 35 हिंदी के मूल व्यंजन+ दो आगत व्यंजन(ज़. फ़) हैं। 

क्ष त्र ज्ञ श्र एकल व्यंजन नहीं हैं। ये संयुक्त व्यंजन हैं। 

 लेखन के आधार पर

 लेखन के आधार पर हिंदी में वर्णों की कुल संख्या 55 है। 

इसमें उन सभी पूर्ण वर्णों को शामिल किया जाता है जो लेखन या मुद्रण में प्रयोग में आते हैं पर स्वतंत्र रूप से

            स्वर

स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण स्वर कहलाते हैं। परंपरागत रूप से इनकी संख्या 13 मानी गई है। उच्चारण की दृष्टि से केवल 10 ही स्वर हैं।(अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ) 

 

स्वरों का वर्गीकरण: 

मात्रा के आधार पर- 

ह्रस्व स्वर- जिन के स्वरों के उच्चारण अर्थात बोलने में (कम समय) एक मात्रा का समय लगता है उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। 

दीर्घ स्वर जिन के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दोगुना अधिक समय या दो मात्रा का समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। जैसे – आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अॉ

प्लुत स्वर-जिनके उच्चारण में दीर्घ से भी अधिक समय लगता है प्लुत स्वर कहलाते हैं। जैसे – रा ऽऽऽम

           व्यंजन-

 जिन वर्णों के उच्चारण में वायु रुकावट या घर्षण के साथ मुंह से बाहर निकलती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं। व्यंजनों का उच्चारण सदैव स्वर की सहायता से होता है; 

जैसे – क् + अ =क 

व्यंजन के भेद – हिंदी में कुल 37 व्यंजन हैं। 

स्पर्श व्यंजन 27 

अंतस्थ व्यंजन 4

 उष्म व्यंजन चार

 आगत व्यंजन दो 

स्पर्श व्यंजन – जिन वर्णों के उच्चारण में वायु कंठ से निकलकर मुंह के किसी भाग को स्पर्श करती हुई बाहर निकलती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है। स्पर्श व्यंजन इस प्रकार हैं

अंतस्थ व्यंजन – अंतस्थ का अर्थ है स्वर और व्यंजन के बीच स्थित। इनका उच्चारण जीभ, तालु, दांत और होंठों के निकट आने से होता है किंतु सांस में रुकावट कम होती है। यह चार हैं- य र ल व

 उष्म व्यंजन- इन व्यंजनों के उच्चारण में हवा मुंह के किसी स्थान से रगड़ खाकर बाहर निकलती है। इनके उच्चारण में ऊष्मा सी उत्पन्न होती है। ये भी चार हैं-श ष स ह 

 आगत व्यंजन- अरबी, फारसी और अंग्रेजी भाषाओं से आए कुछ शब्दों के उच्चारण के लिए हिंदी में नीचे नुक्ते वाले वर्णों का प्रयोग होता है जैसे( ज़रा, रफ़ू, रफ़ी आदि।

 संयुक्त व्यंजन- हिंदी वर्णमाला में 4 संयुक्त व्यंजन हैं-क्ष त्र ज्ञ श्र

  ये दो व्यंजनों के सहयोग से बनते हैं। यह स्वतंत्र व्यंजन नहीं हैं। 

  कंठ से- क ख ग घ ङ ह

 तालु से – च छ ज झ ञ य श

 मूर्धा से – ट ठ ड ढ ण ड़ ढ़ ष

 मसूड़े से(वत्सर्य से) – स ज़ र ल

 ओष्ठ से – प फ ब भ म

 दंत ओष्ठ से – ब फ़

दांतो से – त थ द ध न

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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