रही होगी वजह कोई जो
उसने छोड़ दी महफिल
उसे मगरूर कहकर क्यों
भला हर पल चिढ़ाते हो
है ढाई चाल में माहिर
ना बैसाखियों पर जा
है लम्बी रेस का घोड़ा
क्यों उसको आजमाते हो
तुम्हें तो शौक है मसले
धुंए में उड़ाने का
जो हल करता है हर मुश्किल
उसे क्योंकर रुलाते हो
वो जुगनू से सितारे देखकर
खुश है बहुत खुश है
उसे काहे को तुम अखबार के
पन्ने दिखाते हो
नहीं कहता ए मेरे दोस्त
हुआ वो सिरफिरा पैदा
ज़ुनूनी है फकत बस वो
तुम पागल बुलाते हो
वो अपनी लाश कांधे पर
उठाकर कब का निकला है
बोझ कैसा भी हो कम है
क्यों आंसू से डराते हो
प्रीति राघव चौहान