मौसम  मेरे शहर का यह कदर बेइमान हुआ
हर इक कतरा हवा का मौत का सामां हुआ
किसका  पूछें हाल  बंधु हर कोई बेहाल है
अपनी ही गुस्ताख़ियों से गर्क ये इंसान हुआ
सिर्फ़ एक मेरे तुम्हारे मानने से क्या होगा
गाँव सारा ले कर  तीली खेतों को रवां  हुआ
उसको भी नयी ब्रेजा या बलोनो चाहिए
पांव निकल आए हैं बेटा अभी जवां हुआ
मेरे हुज़रे में रोशन जो इक चिराग है
कहते हैं ये नूर भी कालिख ए जहां हुआ
 नक्शे जहां पर मेरे मुल्क का परचम बुलंद
अपने ही मुल्क में मलूल हिन्दोस्तान हुआ
“प्रीति राघव चौहान”

उपरोक्त पंक्तियाँ प्रीति राघव चौहान द्वारा लिखित मौलिक रचना है। इस प्रकार एकमात्र एकमात्र लेखिका है।

 

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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