मौसम मेरे शहर का यह कदर बेइमान हुआ
हर इक कतरा हवा का मौत का सामां हुआ
किसका पूछें हाल बंधु हर कोई बेहाल है
अपनी ही गुस्ताख़ियों से गर्क ये इंसान हुआ
सिर्फ़ एक मेरे तुम्हारे मानने से क्या होगा
गाँव सारा ले कर तीली खेतों को रवां हुआ
उसको भी नयी ब्रेजा या बलोनो चाहिए
पांव निकल आए हैं बेटा अभी जवां हुआ
मेरे हुज़रे में रोशन जो इक चिराग है
कहते हैं ये नूर भी कालिख ए जहां हुआ
नक्शे जहां पर मेरे मुल्क का परचम बुलंद
अपने ही मुल्क में मलूल हिन्दोस्तान हुआ
“प्रीति राघव चौहान”
उपरोक्त पंक्तियाँ प्रीति राघव चौहान द्वारा लिखित मौलिक रचना है। इस प्रकार एकमात्र एकमात्र लेखिका है।