मोनालिसा – 2

मैं चाहते हुए भी नहीं बन पाती मोनालिसा

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मैं चाहते हुए भी

मोनालिसा नहीं बन पाती

क्योंकि मुस्कुराना कभी आया ही नहीं

जब जब की मुस्कुराने की कोशिश

फक्क से निकली जोरदार हंसी…

बत्तीसी बाहर बेढब सी ऊंटियाना

मुंह बंद कर हंसी को गहनतम भेद सा छिपाना

भीतर और बाहर दो संसार बसाना

उसकी तरह नहीं आया जताना

मोनालिसा इलीट क्लास की बेजोड़ बाला रही होगी शायद

जिसके चित्र को ढूंढने जमाना निकल पड़ा

चित्र की कीमत से आंकी गई मुस्कान

यहाँ तो समूचा खिलखिलाता इंसान

बिकता है कौड़ियों के भाव

मैं चाहते हुए भी मोनालिसा नहीं बन पाती……

…. प्रीति राघव चौहान

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEpritiraghavchauhan.com
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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