मैं शिक्षा विभाग में शरणार्थी हूँ
लगा रहता हूँ जद्दोजहद में
छिपाने अपने पैबंद
लाता हूँ रवि बाजार से
उतरन और पुरानी मसंद
पढ़ाना फिर वोट बनाना
और नोटों के चक्कर में
देर रात तक पढ़ाना
फिर भी जाना जाता मैं स्वार्थी हूँ
मैं शिक्षा विभाग में शरणार्थी हूँ
जब कोई एक्स्ट्रा ड्यूटी हो
तब मुझे पुकारा जाता है
मेवात मोरनी जैसे को
मुझसे ही बुहारा जाता है
मांग न बैठूं संगी से कुछ
मुझको दुत्कारा जाता है
आज भी उनकी कक्षा का
सबसे पिछड़ा विद्यार्थी हूँ
मैं शिक्षा विभाग में शरणार्थी हूँ
बिटिया हुई सयानी हैं
चर्चे उनके अब दुगने हैं
प्रौढ़ हो चला हूँ फिर भी
ताने स्त्री के तिगुने हैं
बीमार बाप बूढ़ी माता
खर्चे मेरे अब चौगुने हैं
घर की छत तक पक्की ना
रुके काम सौगुने हैं
पक्का होने की चाहत में
समानता का अभ्यर्थी र्हूँ
मैं शिक्षा विभाग में शरणार्थी हूँ
जिस रोज उठूंगा दुनिया से
वो दो सौ दो सौ कर देंगे
मेरे इस टूटे-फूटे घर को
पक्का सा मकबरा कर देंगे
जाने से पहले कह दूंगा
मजदूर ढूंढना बेटिन को
भीख से बेहतर वो भी है
अपना तो बिटौड़ा भर लेंगे
ढोता रोज मजे से अपनी ही अर्थी हूँ
मैं शिक्षा विभाग में शरणार्थी हूँ
“प्रीति राघव चौहान “