मैंने हिंदू देखे मैंने मुसलमां देखे अपनी ही भूख से सारे पशेमां देखे
गाँव के जोहड़ दुकानों में तब्दील हैं गाँव के नाले खेतों में रवां देखे
फक़्र से बेटों की जगह जनी बेटियाँ आबरू से खेलते कुंठित नौजवां देखे
वो भी जमाना था एकलव्य हुए यहाँ गुरुओं के काटते शीश नवयुवा देखे
चन्द जो अघाई न झेल पाते हैं यहाँ बस वही बनते मौत का सामान देखे
अब भी उम्मीद का जुगनू है मुट्ठी में सितारे तो बेपनाह होते फना देखे