मेरे अंदर का इक बच्चा

बड़ा होने से डरता है

बड़े लोगों की दुनिया में

खड़ा होनेसे डरता है

जमाने भर की गर्दिश

है लपेटे अपने हाथों में

जरा मासूमियत देखो

सना होने से डरता है

इसकी आँखों में झांको तो

अभी तक है चमक बाकी

इतना गुस्ताख़ होकर भी

जवाँ होने से डरता है

अपनी ही हथेली की

बना कर छाप हँसता है

दिन ढले जाए घर कैसे

अजां होने पे डरता है

जमाना भर पिटारों में 

न जाने घूमता है क्या

कहीं ले जाए ना कांधे

खोपी वालों से डरता है

अपने ही लिहाफों से

बनाकर अपनी खोली इक

छिपकर झाँकता है और

खड़ा होने से डरता है

इसे ये कैसे समझाए

है दुनिया खुद अंधेरों में

तेरे हाथों में सूरज है

फना होने से डरता है  

 

VIAPRITI RAGHAV CHAUHAN
SOURCEPritiRaghavChauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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