मन ये चाहे तू बच्चा हो जा

बचपन की आँख में सपने हैं बहुत बड़ों की आँख में बस ख़ुद का जहाँ रहता है

0
1542

मन ये चाहे तू बच्चा  हो जा

 खफ़ा सच से मगर सारा जहाँ रहता  है

मुँह पर तेरा पीठ फिरते ही फिरा

जहाँ ये दोगला  सच को कहाँ सहता है

आईना हो तो तोड़ सकते हो

अपने चेहरे से जुदा दर्द कहाँ रहता है

बचपन  की आँख में सपने हैं बहुत

बड़ों की आँख में बस ख़ुद का जहाँ रहता है

क्या जरूरी है हर शय में मुनाफा़ देखें

बचपन ही है जो अय्यारी से जुदा रहता  है

ये माना बदली  है सूरत और शक्ल

मुझमें  आज भी वो बच्चों सा  गुमां रहता है

VIAप्रीति राघव चौहान
SOURCEप्रीति
SHARE
Previous articleलाल दीवारें..
Next articleGuest.. Maina
नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

LEAVE A REPLY