मत रोको अब बह जाने दो
एक समन्दर
मन के अन्दर
कतरा कतरा
कह जाने दो
मत रोको अब बह जाने दो
मन की मछली
आस का पाखी
मंथर मंथर
बह जाने दो
मत रोको अब बह जाने दो
खींचातानी
कब तक यूँ ही
किले अहं के
ढह जाने दो
मत रोको अब बह जाने दो
ताल मिलाकर
हर पल चलना
दर्द भरा है
सह जाने दो
मत रोको अब बह जाने दो
रच दो इक
इतिहास नया
बीत गया जो
वह जाने दो
मत रोको अब बह जाने दो
प्रीति राघव चौहान “