भारत एक भारत एक विशाल भावना शील देश है ।यहाँ और कुछ हो या ना हो, भावनाएं लोगों के अंदर कूट-कूट कर भरी हुई हैं और जहां भावना होंगी वहां इनके दोहन का होना निश्चित है। परम्परा ही ऐसी है यहाँ कि द्वार पर आया कोई खाली न जाए।
एक वक्त था जब साधु संन्यासी ही भिक्षा पर जीवन यापन करते थे। उसी के अनुसार उनके नियम- धर्म भी कड़े थे वे केवल मुट्ठी भर अन्न ले वापस अपनी उपासना में लग जाते थे लेकिन आज वह वह बाात नहीं है। आज तो भिखारियों का एक पूरा जाल बिछा हुआ है जो यहां वहां से बच्चों को उठाता है और उनसे भीख मंगवाता है। लेकिन भारतीय मानस अभी उन्हीं परंपराओं में जी रहा है। उसके सामने कोई भी आए और हाथ फैला दें तो वह कुछ ना कुछ देगा जरूर और यही कारण है भिखारियों का यह जाल दिन-ब-दिन फैलता ही जा रहा है जिस रोज हम इन्हें भीख देना बंद कर देंगे हम एक हम एक भिक्षुक मुक्त समाज की स्थापना करेंगे बाहर के देशों के बारे में इतना नहीं पता हालांकि वहां भी मांगने के लिए लोग अपने हुनर का इस्तेमाल करते हैं।
भारत के किसी भी बड़े शहर को लें। लाल बत्ती वाले चौराहों पर इन भिखारियों की भरमार दिखाई देगी और हद की बात तो यह है साहब कि ये पूरे के पूरे गैंग में चलते हैं। हम सब इन्हें देख या तो मुँह छिपा कर निकल जाते हैं या पाँच दस रुपये पकड़ा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। किसी को अपने से हीन जानकर हमें आत्मिक तुष्टि जो मिलती है। बड़े-बड़े एन जी ओ, समाज सुधारक कहाँ सोये रहते हैं? इनके लिए कोई अलख क्यों नहीं जगाते?
कब तक भारत प्रगतिशील कहलाता रहेगा? अब इसे विकसित होना ही होगा। रोक दीजिए अपनी दस-पाँच रुपये की मदद वाले हाथ। इन्हें शिक्षा दें। छोटे ही सही रोजगार दें। प्रशासन को जागना होगा और उन्माद सी बढ़ती इस भीख की कुप्रथा का समूल उन्मूलन कराने में सहयोग करना होगा।