बच्चे खिलखिलाते हैं
हँसते हैं तकते हैं
अबूझ किस्सों कों
परियों की कहानियाँ
उन्हें आज भी लुभाती हैं
पहाड़ पर चढ़ती विशाल मकड़ी
रेत में चलते भूरे चींटे
सहज ही खींचते हैं उनका ध्यान
मछलियाँ हों या गाय बकरी गधे घोड़े
बसें कारें छिपकली साँप
खेत में खड़े डरावे
उन्हें अच्छे लगते हैं
किसी प्रदर्शनी में
व्यर्थ भाषण और पुरस्कार
उन्हें लुभाते नहीं हैं
मुख्यअतिथि से फेरकर पीठ
बच्चे देखते हैं तितलियाँ
और भाषण समाप्ति पर
अनायास बजाते हैं तालियाँ