एक बार की बात है फोन हुआ बीमार
परदे के पट बन्द थे बैटरी भी लाचार
तरह-तरह के चार्जर तरह-तरह के तार
जतन किए बहुतेरे पर सगरे भये बेकार
करे जतन बहुतेरे पर मूर्छा न टूटी
उठा चले हम फुनवा लेबे सैमसंग बूटी
सैमसंग का सर्विस सेंटर था बड़ा निराला
एकही बार में सात सात कू तारन वाला
छत्तीस बैठे कुरसिन पर मोबाइल वाले
सगरे सोचें पहलम पहले हमें बुला लें
नंबर किसका पहले आये सिस्टम था बेकार
इन्फर्मेशन टीवी दिखलाता पैंडिंग चार
घंटे भर के बाद भी टीवी चार दिखावै
करें कहा प्रीति जी कछु भी समझ न आवै
पतिदेव से मांग फोन उंगलिन में भींची
पैंडिंग चार बुलेटिन की फिर फोटवा खींची
कुर्सिन पर बैठे केयरधारी सन्न भय गए
चौकीदार से नजर बचाकर कहा कह गए
बेचारा घबराया हम तक दौड़ा आया
बोला मैडम चलिये आपका नंबर आया
केयरधारी छः बोला स्वागत है मैडम
कहिये कैसे करें आपकी दूर प्रॉब्लम
हम बोले देखें जरा फोन भया बीमार
ना टिन टिन ना टूं टूं भै गया काला जार
कालो धौलो चार्जर कोई काम न आवै
तरह-तरह के तारन कू भी धता बतावै
इत्तौ मंहगो फोन लियौ तऊ हुवो बेकार
कब तै मूक पड़ो है व्हाट्सप भये हजार
बात हमारी सुनकर मोटूमल मुस्काए
मन ही मन कह रहे ऊंट पहाड़ तले आए
लिया फोन हमसे अपने चार्जर में खोसा
घंटे भर आब्जरवेशन में है रखें भरोसा
घंटे बाद बुलाया सर लटका कर बोला
बैक स्क्रीन टूटेगी जो इसको खोला
बिन खोले खुल पाएँगे ना बीमारी के राज
आप कहें तो कर दें इसनै सही अभी और आज
चारा कोई और नहीं अपने आगे देख
हमने सर खुजलाते घुटने दिये थे टेक
मोटू ने भी अपना चक्कर खूब चलाया
भीतर इसके सभी सही है हंसकर बतलाया
नई बैक स्क्रीन डाल दी बढिय़ा वाली
तार नई ले जाएं असली सैमसंग वाली
बत्तीस सौ रुपये में बखिया खूब उधेड़ी
और खींच ले फोटवा सैंटर की येड़ी
घंटे चार कीमती हमने वहाँ गँवाए
नामी सैन्टर से लौट के बुद्धू घर को आए
“प्रीति राघव चौहान”