आज भी उस दिन को याद

Pachmari
Pachmari

करती हूँ तो मन खुशी से भर जाता है जब हमारी कक्षा की शिक्षिका ने कहा कि तुम्हें पचमढ़ी एडवैंचर कैंप के लिए चुना गया है। मुझे लगा हम चंडीगढ़ जैसी जगह जाएंगे। मैंने अपने मम्मी पापा से जाने के लिए अनुमति मांगी। उनकी हाँ ने मुझे दुगनी खुशी से भर दिया। मैं जब अपनी टीचर जी के साथ दिल्ली हज़रत निजामुद्दीन पहुंची तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा वहाँ मेरे जैसे बहुत सारे बच्चे थे। हमने मिलकर लंच किया। मेरा रेल का ये पहला सफर था। पहली बार देखी रेल ऐसे लगी जैसे बहुत सी बसों को जोड़ दिया हो। 

रास्ते में नानी का शहर पलवल आया। रात में खाना खाया पर नींद नहीं आई। एक पागल आदमी ट्रेन में चक्कर काट रहा था व बार बार लाईट जला रहा था। 

     सुबह आठ बजे हम पिपरिया पहुंचे.. 

पिपरिया में पीपल ना 20/03/24

ना थी कोई पीपनी

मैडम जी ने चढ़ा दिये

आगे बस में पचमढी 

पचमढी में बड़ा था द्वार 

नहीं टके थे बंदनवार 

फोटो रख ली खींचकर

हमने आंखें मीचकर

पेट में चूहे पेड़ पर बंदर

मचा रहे थी कुल्लाबाती

पोहे देखे पहली बार 

चाय हमें न तनिक सुहाती

घर कपड़े की झोपड़ी

जिसमें न थी कोई घड़ी 

जंगल में सबसे पीछे

 पेड़ों नीचे थीं बड़ी 

शाम को थे राजेन्द्र गिरी

 मिली जहाँ ना कोई गिरी

सूरज  इक सोने जैसा

पके हुए  फल के जैसा

आई रात लगा था डर

रात घनी बिजली ना पर

हनुमान चालीसा पढ़ सोए

खर्राटों में खोया मोए मोए

अगले दिन बी फॉल गए 21/03/24

चलते चलते हार गए

जैसे ही आया झरना

रिपटे फिसले पार गए

मैदानों में खेले खेल

तीरंदाजी शूटिंग मेल

गोल गोल गुब्बारे में 

धक्का मुक्की रेलमपेल

 हरियाणे का नाच किया 

धूम धड़ाका साच किया

कैंप फायर थी चीज नई

घने मजे ले वाच किया

अगले दिन थी बी पी सिक्स 22/03/24

बल्किस बानो के संग फिक्स

सुबह सवेरे पीटी वीटी

नहीं लगा अच्छा रीमिक्स 

सबके सब फिर पैदल थे

नौ संगी इक्कीस दल थे

सारे बनकर मस्त कलंदर

जा पहुंचे थे जटाशंकर 

वाह क्या खूब नजारा था

धुंए संग जयकारा था

महादेव त्रिशूल के संग

बोल बम का नारा था

खा पीकर विश्राम नहीं 

यही बात थी अनकही

कैसे थे वो बाधा खेल

हारनैस संग डर नहीं 

अगले दिन थे रीछगढ 23/03/24

रीछ नहीं जिसमें थे पर

संकरी सी थी एक गुफा

सरक सरक कर निकले सर

 

मछली भर भर झोली में 

खूब नहाए होली में

तितली संग रम्य कुंड बड़ा

मिलकर गाए टोली में 

पतझड़ छाया जंगल में 

खाना खाया जंगल में 

पत्तों पर विश्राम किया

गाना गाया जंगल में 

रात मचाई फिर से धूम

नाचे गाए मिलकर झूम

अगले दिन जिपलाईन पर 24/03/24

सरक रपट कर बोले बूम

की आसमान में साईकिलिंग

बजा के घंटी ट्रिंग ट्रिंग

हमारा पचमढ़ी जाकर

मजे मजे में की बोटिंग 

पत्ते देखे देखे पेड़

हरड़ बहेड़ा थे बेमेल 

स्वर्ण चंपा रक्त बरा

साज सरई अद्भुत भीरा

पच्चीस को की क्लाईंम्बिंग25/04/24

साथ साथ की रैपलिंग

सारी चढ़ाई एक तरफ

सबसे बढ़िया थी ट्रैकिंग 

अगला दिन मस्ती का वार26/07/24

रंग लिये था मंगलवार 

साफ सफाई के साथ ही

फनगेम की थी भरमार 

होली खेले मस्ती में 

बिन पानी के बस्ती में 

गुरुओं संग लिये गुलाल 

लेकर नाचे मस्ती में 

पहले खेला जमकर फाग

टैंट सजाया भागम भाग

देश भक्ति का जलवा ले

खूब मनाया हमने फाग

शाम मचा फिर से बवाल 

सबकी बदली बदली चाल

सभी थकन से चकनाचूर 

मचा रहे खुलकर धमाल 

सत्ताइस को बाईसन थे 27/03/2024

फिर भी सभी टनाटन थे

पांडव गुफा चढाई पर

उतरे सभी दनादन थे

पैदल पैदल पचमढ़ी 

हमने देखी पचमढ़ी 

मन में है बस यही सवाल 

फिर कब आना पचमढ़ी 

संजना 

राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय 

रेवासन, नूँह 

VIAPritiRaghavChauhan
SOURCEPritiRaghavChauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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