उसके कदम थिरकते हैं

माँ वृंदावन को जाती है

जैसे कबूतर मूंद कर आँखें

कर रहा हो इंतजार

अनहोनी टल जाने की

बंद उन आँखों में

तैरते हैं ताजे समाचार

उसकी आँखों के इंद्रधनुष

पर भारी क्यों हैं

तुम्हारी संभावनाओं के

काले घन अपार

क्यों नहीं करतीं कदम ताल

हे विष्णु प्रिये – सृष्टि के साथ

करोड़ों के प्रदेश में

चंद काले भैरव

कब तक करेंगे हाहाकार

चेहरे को ढक लो छाती तक

ये सीख सृजन को

कदापि न देना

भय आक्रांत देख कर

वो छाती पर चढ़ आयेंगे

नोंच कर रंग सारे

कुंदित मन कर जायेंगे

सीख यही हर पल देना

तुम में साहस

तुम हो अजेय

तुम कर डालो

कर सकती हो

दुर्गा शक्ति करेगी क्या

तुम साहस तुम ही शक्ति हो

भाषा से नासा तक होने दो विस्तार

गढ़ने दो अपनी परिभाषा

माँ बनो उसका आधार

माँ बनो उसका आधार….

“प्रीति राघव चौहान”

चित्रांकन :आरुषि चौहान

 

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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