जानकर परिवेश उसका
करें उसके दिल की बात
रोज-रोज, कदम दर कदम
चलना होगा उसके साथ
क्या सीखा? कितना सीखा?
और क्या बाकी अभी?
सीखने होंगे हमें
उसके अपने शब्द सभी
करना होगा हमें
भाषा का विस्तार
उसके अपने शब्दों से ही
सिखाएँ शब्द हजार
बातचीत से स्नेह प्रीत से
सुना कहानी मूल्यों वाली
दंत कथाएँ बालगीत से
बढ़ती डाली मूल्यों वाली
दें स्पष्ट निर्देश उसे
नाना विधि समझाएं
पूछे प्रश्न भांति भांति से
समझ का स्तर बढ़ाएं
सीधी समझ रखे वो
हो अर्थ का उसको भान
करे तर्क और विश्लेषण
हल करे सभी परिमाण
सृजन स्तर तक पहुंचाना
है अपनी जिम्मेदारी
बहुत हो चुका है प्रमाद
अब निपुण मिशन की बारी
चलो बनाएं पाठ योजना
लेकर कौशल एक
उप कौशल में बांटे इसको
बालक की क्षमता देख
छोटे-छोटे सोपानों पर
नित उत्साह बढ़ाएँ
मिलकर बालक के दल बल में
सीखें और सिखाएँ
एक भी बालक छूटे ना
सब गाएं समवेत अशेष
निपुण गांव हर शहर निपुण है
निपुण है मेरा भारत देश
निपुण भारत मिशन केवल एक व्यक्ति की विचारधारा नहीं वरन् ये वो सपना है भारतवर्ष का जो शनैः शनैः साकार हो रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे इस अमूल – चूल परिवर्तन को पुरातनपंथी विचारधारा वाले लोग शायद न समझ सकें.. क्योंकि वो सिर हिला- हिला कर रटन्त प्रणाली से उपजे हैं। सन 1988-89 के आसपास गाईड का चलन आरम्भ हुआ। गाईडों के आने के बाद दो अमूल-चूल परिवर्तन हुए.. शिक्षकों की राह आसान हो गई और बालकों के दिमाग उंगली 👉के इशारे पर काम करने लगे। यही वो समय था जबसे गाईड से इतर कोई भी उत्तर गलत होने लगा। दो और दो चार को कितने तरीके से लिखा, सोचा, किया जाना है केवल गाईड बता सकती थी। यदि वहाँ 2+2=4 लिखा है तो वही परम सत्य था।
शिक्षक उत्तर कुंजी हाथ में ले कॉपी चैक करने लगे। यदि उत्तर दस पंक्तियों में लिखा तो दस.. और बच्चे गाय पर दस पंक्ति के रट्टे लगाने लगे। वो गाय जो वो अपने घर में रोज देखते थे उसे गाईड अनुसार बताने लगे। बेशक उस वक्त उनके घर में गाय का रंग सफेद रहा हो.. किंतु उन्होंने गाय के सारे रंग बताए। एक पंक्ति में पालतू पशु, दूसरी में दो आँख, तीसरी में दो कान… कुल मिलाकर रटन विद्या का असर ये हुआ कि जिसने भी अपने घर की गाय के बारे में बताया वो कहीं न टिक पाया! नम्बरों के चक्कर में कितने जान से गए और कितने महाबुद्धि असफल हो अपनी कमियों को ढूंढने में बुढ़ा गए।
नई शिक्षा नीति का मिशन हर बच्चा समझे भाषा और गणना.. आने के बाद से आया ये अमूल – चूल परिवर्तन… जिसमें मौखिक भाषा विकास नंबर एक पर है… क्रमशः