मैं वतन का हूं सिपाही

मैं वतन का हूँ सिपाही

यह वतन हमदम मेरा

इसके सजदे करते-करते

बीते यह जीवन मेरा

मैं वतन का हूं सिपाही

यह वतन हमदम मेरा

               इसकी मिट्टी ने संवारा

              इस पर ही जीवन निसार

             इसकी सरहद जब पुकारे

        दौड़ा जाऊं बार-बार

         यही मेरा बागबां है

          और यही चमन मेरा

मैं वतन का हूं सिपाही

यह वतन हमदम मेरा

             वेशभूषाएं निराली

            देखो कितनी बोलियां

            ईद है कही है दीवाली

           लोहड़ी जले कभी होलियाँ

            इसके चरणों में सदा

           गूंजे यही वंदन मेरा

मैं वतन का हूं सिपाही

यह वतन हमदम मेरा

            प्रीति राघव चौहान

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEPritiraghavchauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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