जन्मदिन है उनका कहो क्या पकायें
ख़्याली पुलावों की प्लेटें सजाये
दिवस तीसवाँ आखिर का महीना
बातों के हम कितने लच्छे बनाये
लगा ली हैं सीढ़ी सुधाकर तक देखो
रश्मियाँ पीयूष की कहो तो पिलायें
है फांकानशी कुछ तो खाना पड़ेगा
रखीं हैं कसमें कहो तो सजायें
काटी हैं पीसी है बाँटी भी दिनभर
सजाकर रखी है कहो तो दिखायें
मन तो बहुत था बहुत कुछ बनाते
अपने हो आखिर क्या बकरा बनायें
हवा ही हवा है यहाँ से वहाँ तक
तुम भी वो खाओ हम भी वो खायें
प्रीति राघव चौहान