छुट्टियाँ

बंद कमरा

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छुट्टियाँ

छुट्टियाँ शुरु होते ही मन बल्लियों उछलने लगता हैं। ढेरों योजनाएं बनाई जाती हैं। हर बार की तरह छुट्टियों में भी बहुत सारे काम थे जो निपटाने थे। कुछ रिश्तेदारों से मिलना, गरीब बच्चों को पढ़ाना, अपने लेखन के लिए अच्छा समय निकालना और अपने लिए व्यायाम जैसे छोटे-मोटे बहुत से काम…

…………..

अभी गर्मी की छुट्टियाँ शुरु हुए सात दिन भी नहीं हुए थे कि छुटंकी ने रट लगा ली …

 “ चलो ना पापा कहीं बाहर घूमने चलते हैं। सभी लोग बाहर जाते हैं……. तो हम क्यों नहीं जा सकते? ज्यादा दूर नहीं तो थोड़ा पास ही चल पड़ेंगे। चलो ना… चलते हैं। हमने तो आज तक गुड़गांव का ‘ किंगडम ऑफ ड्रीम्स ‘, भी नहीं देखा….. मेरे सभी दोस्त बाहर घूमने के लिए गये हैं।“ प्रज्ञा ने मचलते हुए कहा ।

“ओ हो ! कह तो दिया चलेंगे।” कुणाल ने हां में हां मिलाई।

परंतु वो बात मुझसे कर रही थी। इधर मैंने उधर कुणाल दोनों ने ऑनलाइन के ओ डी की टिकट के प्राइस देखने को मिला शुरु कर दिये। यह क्या…?तीन हजार रुपये एक आदमी के… यानी हम चार…. तो एक दिन के लिए बारह हजार ! कुणाल ने हँसकर प्रज्ञा को झूठी तसल्ली दी……..

“ ठीक है चलेंगे। “

पूर्णिमा को बारह हजार कुछ ज्यादा लग रहे थे।

“यह क्या? अलग-अलग स्टेट के खान-पान को देखने के लिए और थिएटर जो हम फ्री में देखते हैं…. उसके लिए बारह हजार… यह कुछ अच्छा सौदा नहीं है।”, उसने छुटकी को समझाया….. “इतने पैसे में तो हम हिल स्टेशन घूम आएंगे। कोई आसपास के हिल स्टेशन को गूगल में सर्च करके बता तो जरा ।”

 वो उसका ध्यान डाइवर्ट करने में सफल रही। प्रज्ञा ने बेस्ट हिल एरिया नीयर गुड़गांव… देखने शुरू किये। मुझे देख कर उत्साहित होते हुए बोली, “मम्मी! यह देखो कितनी सुंदर जगह है। लैंसडाउन टॉप टेन की सूची में है।”

“चलो देखो जरा कितनी दूर पड़ती है।” उसने हंसते हुए कहा ।

“मम्मी, बस 6 घंटे का रास्ता है टैक्सी से। चलो चलते हैं।

“बहुत अच्छा.. ठीक है। जरा होटल का किराया देखो कितना पड़ेगा,,, सस्ता कौन सा है। देखो फाईव स्टार फोर स्टार तो शायद हमारे बजट में नहीं होगा। ठीक ठाक देख लो।” पूर्णिमा ने कहा।

“होटल का किराया तो दो जन का साढ़े पांच हजार का बैठ रहा है। यानी कि हम दो लेंगे तो ग्यारह हजार पर नाइट हैं।” प्रज्ञा ने बताया।

उसने झल्लाते हुए कहा “ग्यारह हजार एक रात के लिए। किसी और जगह पर देख लो।”

“हमें कितने दिन के लिए वहाँ रहना है? चार दिन या पाँच दिन।”

“चार दिन काफी रहेंगे।”

“ठीक है ,, मम्मी यह कसौली देखो कितना खूबसूरत है देखो। पर यहां भी होटल के रेट ऐसे ही हैं………. होटल सामंथा _सात हजार । लगभग इसी रेंज के हैं।”

“नहीं भाई नहीं! एक कमरे के लिए सात यानि कि दो कमरों के लिए चौदह हजार और चौदह चौक छप्पन हजार रुपए। भला बताओ तो, ये केवल ठहरने के हैं। वहां पर खाना भी खाना है, घूमना भी है और आने जाने का किराया भी है। यह हमारे बस का नहीं है। कोई सस्ता सा देखो।” अब पूर्णिमा को लग रहा था कहाँ रोजे छुड़ाने चले थे नमाज़ गले पड़ रही है और।

“चलो ठीक है ममा, ये एक प्यारा सा हिल स्टेशन है औली। है भी दो घंटे की दूरी पर।”

“क्या बोली…. कितनी दूर है…?”

“बस यही कोई दो घंटे का रास्ता है। केवल एक हजार में होटल….”

“हूँ, जरा दिखा तो ऐसी कौन सी जगह है?”, जब उसने देखा औली जोशीमठ के पास है और वह 380 किलोमीटर दूर है तो उसकी साँस में साँस आई। ये औली जो प्रज्ञा ने देखा एक कस्बा था जो सोहना के पास था।

“वाह बेटा ढंग से देख तो लिया कर… अगर तुझे स्माल बजट में कोई चीज दिखे तो देखना। लगभग बीस हजार में हम कहीं घूम आएंगे।”

“मम्मा यह देखो, यह डलहौजी है।”

“कितनी दूर है….. ओहो तुम्हें पता भी है – तुम्हारे पापा ज्यादा देर बैठ कर गाड़ी नहीं चला सकते। उनकी कमर में दर्द होने लगता है और टैक्सी हम अफोर्ड नहीं कर सकते।” उसने प्रज्ञा को बरगलाते हुये कहा।

“इस से तो बेहतर है कहीं बाय एयर चलें।”

“ठीक है मम्मा गोवा चलें।” प्रज्ञा ने खुश होते हुए कहा।

“गर्मी में….. एक भजन निकाल दो गूगल में।” पूर्णिमा ने अनसुना करते हुए कहा।

“लग तो बड़ा हरा भरा रहा है..”

“अच्छा बाय एयर किराया निकाल जरा कितना है?”

“ममा यह देखो पहले, होटल देखो, यहां पर होटल सस्ते हैं।”

“ठीक है पर जाने का किराया तो देख कितना पड़ेगा?” और उसने फिर सर्च मारना शुरू किया….. “यह क्या सैंतीस हजार एक तरफ का!

“ओहो इकॉनामी क्लास…..देख लेना।

 “ अच्छा मेरे फोन में तो उन्नीस हजार आ रहा है ।”

“मेक माय ट्रिप देखो…. तिरुपति बालाजी टूर सबसे अच्छा है ।” मैंने मुस्कुराते हुये दखल दिया ।

“यानि हम बालाजी, पांडिचेरी घूमने के लिए जायेंगे ।जरा देखो तो सही कौन सी डेट देख रही हो मम्मा सितंबर………? सितंबर में तो हमारे पेपर होंगे। ऐसे करो आप ही हो आना। आपको कहीं जाना तो है नहीं ।आप न मुझे गोल गोल घुमा रही हो।”

इस बीच कुणाल सब्जी लेकर आ गए थे। सब्जी मंडी से सब्जियां सस्ती पड़ती हैं। अरे तुम लोग अभी तक यहीं बैठे हो।

“पापा देखो.. हमने ना.. टिकट देखी हैं। चलो गोवा चलेंगे। आप को ज्यादा देर गाड़ी में बैठना भी नहीं पड़ेगा और हम बाय एयर गोवा पहुंच जाएंगें”

“छोड़ छुटकी क्या घूमने की रट लगा रखी है। “अभी इतने पैसे नहीं हैं मैं यह कहना ही चाह रही थी कि कुणाल झुंझला कर बोले – “जहां जाना हो तुम दोनों हो आओ। मैं बीस हजार रुपये दे दूंगा। एक बार कह दिया ना सर्दियों की छुट्टियों में चलेंगे। चाहे बेशक लंबा ट्रिप लगा लेंगे। अंडमान निकोबार वगैरा का।”

“आप हमेशा ऐसे ही करते हो। सभी बच्चे कहीं ना कहीं घूमने गए हुए हैं। कोई वैष्णो देवी कोई गोवा कोई थाईलैंड…. एक हम हैं कि कहीं नहीं जाते।” प्रज्ञा ने रुंआसे स्वर में कहा।

“नहीं बेटा चलेंगे हम चलेंगे किंगडम ऑफ ड्रीम्स।”

“क्या कह रहे हो कुणाल? तुम्हें पता भी है वहां चार जनों का एक दिन का खर्चा बारह हजार रुपए है! पैसे पेड़ पर लगते हैं क्या?”

“बेटा छोड़ के केओडी बहुत महंगा है।“

“ क्यों न हम पिक्चर देखने चलें।” एक बार फिर प्रज्ञा चहकी।

“पिक्चर आज जाएंगे तो डबल पे करना पड़ेगा। पर कुल मिलाकर तुम्हें तो खर्चा करना। जब तुम कमाओगे तो पता चलेगा कैसे जाते हैं, किंगडम ऑफ ड्रीम्स।”

“दिल छोटा मत कर बेटा, हम अपने सुल्तानपुर बर्ड सेंचुरी में चलेंगे। खाना घर से ले जाएंगे।बीस रुपए के टिकट और डेढ़ सौ रुपए घर के खाने के लिए जो लेते हैं । यानी कुल मिलाकर हम चार पांच सौ में मजे से सुल्तानपुर घूम आएंगे। सुबह चलेंगे शाम तक वापस। सस्ते बजट में हम घूम भी आएंगे और पिकनिक भी हो जाएगी क्या ख्याल है?” कुणाल ने कहा कि सुझाव दिया।

“आपका दिमाग खराब है क्या?” गर्मी में कोई सुल्तानपुर जाता है?” प्रज्ञा भुनभुनाई।

“तो ठीक है फिर ऐसे करते हैं… इस महीने हम हम जम कर एसी चलाते हैं और पांच हजार में घर बैठे शिमला के मजे लेते हैं।” पूर्णिमा ने अपनी मध्यमवर्गीय गरीबी पर हँसी का जामा ओढ़ते हुए कहा। ”

“हद हो गई मम्मी… आपका जम के एसी चलाना भी ऐसा ही होगा! एक कमरे में पड़े रहो, उसका भी दरवाजा बंद!!! इससे तो बेहतर मेरी कभी छुट्टियां ना हों।” प्रज्ञा ने तंज कसा।

कुणाल ने टीवी पर तूफान के कारण दी जा रही चेतावनी का स्वर ऊँचा कर दिया।

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEPriti Raghav Chauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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