चींटी के पर

एक बार एक चींटी थी। बहुत नाज़ुक, बहुत महीन, बहुत छोटी सी। उसके पास कुछ भी ऐसा न था कि उसे कोई बड़ा बना सके। केवल एक चीज थी कि वह कभी रुकती न थी! बहुतेरे समझते थे कि वह कभी किसी से बतिया रही है तो कभी किसी से लेकिन वो केवल उतना ही देख रखे थे जितना कोई भी आम आदमी देखता है। उस चींटी ने किस से क्या सुना? किसके दुख सुख को कितना परखा? उसके सिर पर अपने से कितने गुना भार है? उसने स्वयं कैसे अपना अलग एक रास्ता चुना? ये आम आदमी की समझ से बाहर की बात थी! यह बात और है कि उस चींटी के लिए हर रात उस जैसी ही काली रात थी!जबकि इंसान को यह दंभ था कि उसकी रातें खनकते सिक्कों सी उजली हैं! एक दिन उस पगली को बुखार हो गया। आप कहेंगे चींटियों को भी भला बुखार होता है कहीं? पर यह सच था। वो उस भार से संतप्त थी। कारण…? वो अपने भार से दुखी न थी।

उसे दुख था कि उससे हजारों गुणा बड़ा निष्क्रिय मानव उसे देखकर हँसते हुए कह रहा था…. चींटी के भी पर निकल आये!

“प्रीति राघव चौहान”

VIAPRITI RAGHAV CHAUHAN
SOURCEPritiRaghavChauhan
SHARE
Previous articleभारत वर्ष है प्यारा
Next articleबोलो सा रा रा रा
नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

LEAVE A REPLY