चलो एक बार फिर
भरें उड़ान
हौसलों से भर लो पर
रंग बिरंगे रंग ओढ़ कर
पुरातन पंथी ढंग छोड़कर
चलो फिर भरें उड़ान
तुम अनूठी हो
अद्भुत है तुममे साहस
करो न एक बार फिर
जीवन को नए तरीके से
जीने का दुस्साहस
अपने धैर्य को अपनी ताकत बनाओ
अपने छोटे – बड़े हर कार्य को सिर पर ताज
सा सजाओ
ये जो पौधों की फुलवारी
सजाई है तुमने इसका हर रंग तुमसे है
जो दीप जलाया सुबह-शाम उसका उजियारा तुमसे है
तुमसे ही हैं बच्चों के चेहरे पर छाई लाली
तुमसे ही है हर दिन होली
रात दिवाली
फिर किस चमत्कार का है इन्तज़ार
जी लो अपनी ज़िन्दगी
अपने तरीके से
चलो एक बार चलें नए रंग ओढ़कर…
‘प्रीति राघव चौहान’