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चलो इक बार फिर
बैठें बतियाएं
तुम ही तुम कहो
निहारूं मैं
दूर तलक हम चलें
साथ साथ
रास्ते के कांटे तेरे
बुहारूं मैं
रुक कर देखो कनखियों
से तुम
नज़र तुम्हारी नज़रों से
उतारूं मैं
खामोशियों में बहर से
तुम बहो
रदीफ़ काफिये सब तेरे
सुधारूं मैं
किसी पहाड़ की संकरी
पगडंडी पर
निकलो तुम दूर विकल
पुकारूं मैं
“प्रीति राघव चौहान”
उपरोक्त कविता का कॉपी राइट अधिकार प्रीति राघव चौहान का है।