किताबें

किताबों में किस्से हैं कलमा है चौपाई भी
तेरी मेरी इसकी उसकी सी लगती कविताई भी
किताबों में कल है रोमांचक पल हैं
काले हर्फ़ों में लिखें जो रंगी सरल हैं
किताबों में रंग हैं जीने के ढंग हैं
खुशनुमा पलों की उड़ती हुई पतंग हैं
किताबों में गीत हैं बिछुड़े हुए मनमीत हैं
चाय संग तकरार करते हुए संगीत हैं
किताबों में धर्म है किताबों में कर्म है
तमाम कायनातों का छिपा हुआ मर्म है
किताबों में मैं है किताबों में मय है
ताक पर करीने से लगी हर शय है
किताबों में फूल है किताबों में धूल है
तितली के परों सी छिपाई गई भूल है
किताबों में है आदि किताबों में अंत है
जीते जी जो संगी है संग मृत्यु पर्यंत है
‘प्रीति राघव चौहान’