कालू जी ने खूब बढ़ाई

 लम्बी लम्बी मूँछ 

चले अकड़ कर घर से 

बाहर होगी मेरी पूंछ

मुर्रा जैसे सींगों वाली

दिखती उनकी मूंछ

मार मरोड़ा बस में ठाड़े 

जैसे हों फंटूश

आधे गंजे सर के ऊपर 

बित्ते बित्ते बाल 

लगा ततैया आकर करने 

उन पर खूब धमाल 

मारा मारी लपका झपटी

कालू जी मशगूल 

लगे बर्र से पिंड छुड़ाने 

सारी छकड़ी भूल

एक रहपटा पड़ा भिड़ पर 

झपटा बन त्रिशूल 

हाल देखिए कालू जी का

होंठ आँख गए फूल 

मूंछ बेचारी चिकना झापड़

लगकर आ गिरी नीचे 

कालू जी बैठे कराहें

अपनी अँखियाँ मीचे… 

VIAPRITI RAGHAV CHAUHAN
SOURCEPritiRaghavChauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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