खाली झंझावातों से

अंधियारी काली रातों से

अंबर डोले बेशक डोले

कब तृण हारा तू बोल जरा

कदम ताल के तले सही

ओस भाल से ढले सही

फूट पड़ा चट्टानों से

क्यों तृण बेचारा बोल जरा

जंगल, नदिया या सागर हो

रेगर, बांगर या खादर हो

है कौन जगह ये जहाँ नहीं

तृण बंजारा तू बोल जरा!

“प्रीति राघव चौहान”

  • कब तृण हारा तू बोल जरा
    कब तृण हारा तू बोल जरा
VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
SHARE
Previous articleसजग भारत स्वस्थ भारत
Next articleअक्कू जी
नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

LEAVE A REPLY