‘ऋ’ और ‘र’ में अंतर
‘र’ और ‘ऋ’ में अंतर को समझना आपके लिए फायदेमंद साबित होगा क्योंकि कभी-कभी कुछ छात्र ‘र’ और ‘ऋ’ से जुड़ी गलतियाँ कर बैठते हैं।
‘ र’ व्यंजन वर्ण है और ‘ऋ’ स्वर वर्ण
‘र’ का रूप क्र,र्क, ट्र और ‘ऋ’ की मात्रा ‘ृ’ है, जैसे – ग्रह और गृह
‘ऋ’ का प्रयोग जिस किसी भी शब्द के साथ होता है, वह तत्सम (संस्कृत के शब्द) शब्द ही होता
ऋ की मात्रा के कुछ शब्द
कृतज्ञ पृथक
तृण श्रृंखला
हृदय कृमि
कृपा कृष्णा
शृगाल तृषा
कृपालु कृषि
अतिथिगृह सृजन
वृक्ष गृह
घृणा मृत
ऋण तृप्त
मृग वृतांत
कृति भृत
कृतघ्न वृद्धि
दृढ वृद्धि
दृढ मृणालिनी
वृत्त तृतीय
ऋषि वृक्षावली
मृदु मृद्ग
अमृत मृत्यु
ऋषभ मृदुल
घृत दृश्य
कृत्रिम भृकुटी
पृथ्वी कृत
वृथा नृत्य
वृष्टि कृष्णकांत
नृप भृगु
कृषक मृदा
र् वाले शब्द (पदेन र)
नीचे पदेन ‘^’
यह ‘र’ का नीचे पदेन वाला रूप है।‘र’का यह रूप स्वर रहित है। यह ‘र’ का रूप अपने से पूर्व आए व्यंजन वर्ण में लगता है। पाई वाले व्यंजनों के बाद प्रयुक्त ‘र’ का यह रूप तिरछा होकर लगता है, जैसे- क्र, प्र, म्र इत्यादि।
जिन व्यंजनों में एक सीधी लकीर ऊपर से नीचे की ओर आती हैं उसे ही हम खड़ी पाई वाले व्यंजन कहते हैं, जैसे – क, ख, ग, च, म, प, य, ब
ग्रह
क्रय
प्रीति
आम्र
चक्र
ब्रह्म
ब्रिटेन
पाई रहित व्यंजनों में नीचे पदेन का रूप ^ इस तरह का होता है, जैसे- राष्ट्र , ड्रम, पेट्रोल, ड्राइवर इत्यादि।
जिन व्यंजनों में एक सीधी लकीर ऊपर से नीचे की ओर बहुत थोड़ी मात्रा में आती हैं उसे ही हम पाई रहित वाले व्यंजन कहते हैं, जैसे – ट, ठ, द, ड, इत्यादि
‘द’ और ‘ह’ में जब नीचे पदेन का प्रयोग होता है तो ‘द् + र = द्र’ और ‘ह् + र = ह्र’ हो जाता है।
दरिद्र,
रुद्र,
ह्रद,
ह्रास
‘त’ और ‘श’ में जब नीचे पदेन का प्रयोग होता है तो ‘त् + र = त्र’ और ‘श् + र = श्र’ हो जाता है।
त्रिशूल
नेत्र
श्रमिक
अश्रु
त्रिकोण
विशेष द्रष्टव्य
^ का प्रयोग केवल ‘ट’ और ‘ड’ व्यंजन वर्णों के साथ ही होता है। ‘ड्र’ से अधिकतर अंग्रेज़ी शब्दों का ही निर्माण होता है।
कुछ शब्द ऐसे हैं जिनमें दो नीचे पदेन का प्रयोग एक ही शब्द में हो सकता है, जैसे- प्रक्रम, प्रकार्य इत्यादि
कुछ शब्द ऐसे हैं जिनमें नीचे पदेन और रेफ का प्रयोग शब्द के एक ही वर्ण में हो सकता है, जैसे- आर्द्र, पुनर्प्रस्तुतिकरण इत्यादि ।