उपवास तन और मन दोनों को पुनर्जीवित करने वाला और ऊर्जा का भंडार प्रदान करने वाला बहूमूल्य उपाय है .. उपवास आप सप्ताह में एक बार भी रख सकते हैं व दिन में एक समय भी। आप चाहें तो कभी भी उपवास रख अपने जीवन से विद्रूपताओं को ख़त्म कर सकते हैं। उपवास न सिर्फ हमें आध्यात्मिक लाभ देता है वरन उत्तम स्वास्थ्य व आरोग्य भी प्रदान करता है। कुछ लोग इसे धर्म के आधार पर रखते हैं। हिन्दू धर्म आज के आधुनिक विज्ञान पर भी खरा उतरता है। उदाहरण के लिए हम नवरात्रों को ही लें…. नवरात्रों में एक ऋतु से दूसरे में प्रवेश होता है यथा शारदीय नवरात्र व वासन्तिक नवरात्र…. नवरात्र में पूरे नौ दिनों तक निराहार या फलाहार पर लोग उपवास रखते हैं ।जिससे वे आने वाले समय के अनुसार स्वयं को ढाल सकें। अधिकांशतः लौकी, दही, व एकाध फल तथा एक गिलास जूस आदि के साथ किया उपवास फलप्रद होता है। पहले दिन भूख लगती है लेकिन बाद में आदत हो जाती है। साल में दो बार नवरात्रों में आप अपने आपको आप आने वाले समय के लिए इसी तरह तैयार कर सकते हैं । उपवास के निम्नलिखित लाभ हैं – – –
1.ईश्वर से जोड़ता है…व्रत के समय हम ईश्वर के सबसे करीब होते। हैं। कभी भी अनुभव कर देख लें उपवास के समय हम मन वचन कर्म आदि से शुद्ध हो उसकी विराट सत्ता से अभिभूत हो उसकी शरण में जाते हैं। जबकि अन्य दिनों में इतनी सात्विकता के साथ उससे नहीं जुड़ पाते।
2.शारीरिक बलवर्धन… उपवास के समय हमारे शरीर से विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं। सात्विक व सीमित आहार व जल हमारे शरीर की पुनर्रचना कर उसे ताकतवर बनाता है।
3.आत्मशक्ति जागरण…. व्रत से हमें अपनी इन्द्रियों को वश में करने की कला आ जाती है। मनुष्य की आत्म शक्ति ही है जो उसे हर बुरी वासना से बचाती है। आत्मबल का जैसे जैसे विकास होता है मानव उतना ही ऊँचा उठता है।
4.धैर्य धारिता का विकास…. उपवास से मनुष्य में धैर्य धारण करने की क्षमता का विकास होता है। जीवन के बहुत से मसले तो धीरज रखने से ही निबट जाते हैं।
5.क्रोध से छुटकारा…. व्रत तभी पूर्ण माना माना जाता है जब व्यक्ति मन वचन कर्म आदि से पूर्णरूपेण शुद्ध हो। एक व्रती व्यक्ति को क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार आदि सभी को संपूर्ण रूप से त्यागना होता है। यदि व्यक्ति व्रत के समय क्रोधित होता है तो वह व्रत पूर्ण नहीं माना जाता।
6.अहंकार का विसर्जन …..कोई भी व्रत तभी पूरा होता है जब व्यक्ति अपने अहंकार को तिरोहित कर दे। ईश्वर की विराट सत्ता के समक्ष यदि आप अहंकार लेकर जाते हैं तो आप का व्रत केवल एक ढकोसला मात्र है।
7.कुंडलिनी जागरण…व्रत से होता है कुंडलिनी का विकास। व्रत से कुंडलिनी शक्ति का जागरण होता है। कुंडलिनी शक्ति मानव के अंदर कि वह अपार शक्तियां है जो एकत्रित होने पर ऊपर की ओर अर्थात मूलाधार से सहस्रार धार की ओर उठती है। जिससे मनुष्य जितेंद्रिय हो जाता है।
उपरोक्त विचार प्रीति राघव चौहान के मौलिक विचार है।