उजड़े हुए दरीचे उनींदे से दयार

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उजड़े हुए दरीचे उनींदे से दयार

पूछ रहे हैं -क्या  खोजते हो

यहाँ आकर बार बार

करतें हैं कनबतियां

आपस में फुसफुसाकर…

बाज़ार सारे ढह गए

ढह गई बसापत

किले में ऐसा क्या था

जो आई न मलामत ?

बस्तियों के नसीब में

क्या सचमुच नहीं थी छत ?

क्या वजह रही जो

सोमेश्वर हैं सलामत!

बरगद जो उस किले में

अब भी तना खड़ा था

सदियों से आंधियों में

अब तक जमा पड़ा था

दाढ़ी को लहराकर

उसने बज़ा फरमाया

राज भानगढ़ का कुछ यूँ बताया…

फूंस के मकान

और हड्डियों की ठठरी

जमाना हो चाहे कोई

हर युग में उड़ा करते हैं

इंसान खंडहरों में

प्रेत ढूंढा करते हैं

इंसान  जहाँ नहीं है

न बस्ती न गृहस्थी

न है कोई राजा न कोई समस्ती

मेरी तेरी क्या है औकात उसके आगे

जिसने जहाँ बनाया जो हर घड़ी है जागे

देख जरा जाकर तलैया है उसकी गदली

सदियों से इसमें न उतरी कोई पगली

सोमेश्वर के सर पर न तुलसी का ताज है

पूरे भानगढ़ में चमगादड़ों का राज है

…… प्रीति राघव चौहान

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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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