काश जात पूछ

करते वो प्रेम …. 

निकले होते घर से

 घर वालों से पूछ … 

 चले होते लेकर

आज्ञा माता-पिता की .. 

काश उन्हें पता होता

प्रेम करने के लिए

जरूरी है ताकत

शक्ति के अभाव में

प्रेम पंगु है

आज के शंभुनाथ

हलाहल पान नहीं करते

विश्व के कल्याण हेतु .. 

वरन भस्म कर देते हैं प्रेम

तुच्छ राजनीति हेतु..

आज वैश्वीकरण के दौर में 

जब माता-पिता दिखाते हैं 

बच्चों को सपने चाँद के

विक्षिप्त शंभू करते हैं गरल वमन

नापने दो आज की पीढ़ी को आकाश 

ढूंढ लेने दो उन्हें स्वयं अपना क्षितिज

क्यों नहीं तुम अब

हिमालय पर  चले जाते शंभुनाथ .. 

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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