जुदा हर जिन्दगी का फलसफा है दोस्त
गैर की किस्मत का न सिक्का उछालिये
इसी मकतल में उसने सदियाँ गुजार दीं
खुदा का डर दिखाकर न मुश्किल में डालिए
अदब में सर झुकाना फितरत में है उनकी
नाहक गले लगाकर न हैरत में डालिए
दो मुट्ठी दाने काफ़ी हैं तबाक में
मिनकारें हैं सूखी थोड़ा आबचाहिए
मोहतरम अजदाद भी खाली चले गये
पैसों की खातिर न रिश्ते बिगाड़िये
मशरिक या मगरिब मतालबा कुछ हो
अना की खातिर ना कीचड़ उछालिये
फलसफा _ज्ञान मकतल _वधस्थल मगरिब_पश्चिम
तबाक_थाली मतालबा_मांग अना_अहं
मिनकारें_चोंचे मशरिक_पूर्व मअजदाद_पूर्वज