अना की खातिर ना कीचड़ उछालिये /ग़ज़ल

अदब में सर झुकाना फितरत में है उनकी

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जुदा हर जिन्दगी का फलसफा है दोस्त

गैर की किस्मत का न सिक्का उछालिये     

       इसी मकतल में उसने सदियाँ गुजार दीं 

      खुदा का डर दिखाकर न मुश्किल में डालिए         

अदब में सर झुकाना फितरत में है उनकी   

नाहक गले लगाकर न हैरत में डालिए                    

           दो मुट्ठी दाने काफ़ी हैं तबाक में     

         मिनकारें हैं सूखी थोड़ा आबचाहिए                       

मोहतरम अजदाद भी खाली चले गये 

  पैसों की खातिर न रिश्ते बिगाड़िये                        

 मशरिक या मगरिब मतालबा कुछ हो

अना की खातिर ना कीचड़ उछालिये

फलसफा _ज्ञान     मकतल _वधस्थल        मगरिब_पश्चिम

तबाक_थाली       मतालबा_मांग         अना_अहं

मिनकारें_चोंचे       मशरिक_पूर्व      मअजदाद_पूर्वज

VIAप्रीति राघव चौहान
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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